मुख्यमंत्रियों का चयन करना या उन्हें बीच में बदलना कांग्रेस पार्टी के लिए आमतौर पर एक कठिन और अशांत प्रक्रिया रही है. ऐसा करने में कांग्रेस के सामने स्थानीय सियासी आकांक्षाएं, मजबूत दावेदार और उनका दबदबा सत्ता के सुचारू हस्तांतरण के रास्ते में आता रहा है. राजस्थान में अशोक गहलोत के कम से कम 83 वफादार विधायकों की बगावत और इस्तीफा देने की धमकी के बाद राज्य में कांग्रेस सरकार बड़े संकट में पड़ गई है.
पुडुचेरी में गंवाई सरकार
14 साल पहले 2008 में कांग्रेस के लिए ऐसी ही स्थिति पुडुचेरी में बनी थी. पुडुचेरी के मौजूदा कांग्रेस मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी को कांग्रेस हाई कमान के उम्मीदवार वी वैथिलिंगम को नियुक्त करने के लिए जबरन हटा दिया गया था. 2011 में, रंगास्वामी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी. इसके साथ ही उन्होंने एनआर कांग्रेस का गठन किया और सत्ता में आए. रंगास्वामी भाजपा के साथ साझेदारी में केंद्र शासित प्रदेश के वर्तमान सीएम हैं. पिछली कांग्रेस सरकार 2020 में बीच में ही गिर गई थी और पुडुचेरी में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था.
आंध्र प्रदेश में भी वही गलती
मुख्यमंत्री पद के मुद्दे पर कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में कम से कम तीन लोकप्रिय युवा नेताओं को खो दिया है. 2009 में, जब वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तो कांग्रेस ने उनके बेटे जगनमोहन के दावों की अनदेखी की और के रोसैया को अविभाजित आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया. जब जगन की राज्य में यात्रा करने की अपील को खारिज कर दिया गया तब निराश नेता के पास कांग्रेस छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाने के बाद वह 2019 में सीएम बने.
मध्यप्रदेश में हाथ से चली गई सत्ता
इसी तरह, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि कांग्रेस 15 साल के अंतराल के बाद राज्य में पार्टी सत्ता में आ सकी थी. हालाँकि, हाईकमान ने उनके (ज्योतिरादित्य सिंधिया) दावों की अनदेखी की और कमलनाथ को मध्यप्रदेश का सीएम बना दिया. दो साल बाद सिंधिया के भाजपा में आने के बाद सरकार गिर गई. बाद में वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए.
पंजाब चुनाव में भी दोहराई गलती
इन गलतियों के बाद भी कांग्रेस ने सबक नहीं लिया और पंजाब में सत्ता गंवाई. पंजाब में कांग्रेस ने दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी पर फैसला करने से पहले सीएम अमरिंदर सिंह की जगह नवजोत सिंह सिद्धू को स्थापित करने की कोशिश की. चुनाव में बमुश्किल छह महीने बचे होने के कारण सीएम बदलने की जल्दबाजी की प्रक्रिया में सब गड़बड़ हो गया. सिंह ने चुनाव से पहले पार्टी छोड़कर कांग्रेस को बड़ा झटका दिया. कांग्रेस 2022 के चुनाव में सिर्फ 18 सीटों पर सिमट गई, जबकि पंजाब राज्य को आम आदमी पार्टी की नई सरकार मिली.
बढ़ता गया भाजपा का दायरा
इस बीच भाजपा ने सफलतापूर्वक दो बार उत्तराखंड में अपना मुख्यमंत्री बदला और सत्ता बरकरार रखी. इतना ही नहीं 2022 के गुजरात चुनावों की तैयारी में पिछले साल भाजपा ने राज्य में अपना पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया.
असम में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी
कांग्रेस के साथ ऐसा ही असम में भी हुआ. असम में कांग्रेस ने युवा नेता हिमंत बिस्वा के दावों की अनदेखी की और तरुण गोगोई पर भरोसा जताया. तरुण गोगोई और हिमंत बिस्वा सरमा के बीच विवाद का खामियाजा कांग्रेस को असम में सत्ता गंवा कर भुगतना पड़ा. हिमंत बिस्वा सरमा ने राहुल गांधी पर अपने पालतू कुत्ते पर अधिक ध्यान देने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी. तब से वह पूरे उत्तर पूर्व में सबसे शक्तिशाली भाजपा नेता के रूप में उभरे हैं और अब असम के मुख्यमंत्री हैं.