कहां और कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति? जानिए शिव से जुड़े ये रहस्य

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दुनिया में भगवान शिव को भक्त शिवशंकर, त्रिलोकेश, कपाली, नटराज समेत कई नामों से पुकराते हैं। भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। हिंदू धर्म में भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग दोनों की पूजा का विधान है। कहते हैं कि जो भी भक्त भगवान शिव की सच्ची श्रद्धा से पूजा-अर्चना करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। धार्मिक शास्त्रों में शिवलिंग का महत्व बताया गया है। शिवलिंग को इस ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि बनने के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्माजी में युद्ध होता रहा। दोनों खुद को सबसे अधिक शक्तिशाली सिद्ध करने में लगे थे। इस दौरान आकाश में एक चमकीला पत्थर दिखा और आकाशवाणी हुई कि इस पत्थर का जो भी अंत ढूंढ लेगा, वह ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। मान्यता है कि वह पत्थर शिवलिंग ही था।

पत्थर का अंत ढूंढने के लिए भगवान विष्णु नीचे तो भगवान ब्रह्मा ऊपर चले गए परंतु दोनों को ही अंत नहीं मिला। तब भगवान विष्णु ने स्वयं हार मान ली। लेकिन ब्रह्मा जी ने सोचा कि अगर मैं भी हार मान लूंगा तो विष्णु को ज्यादा शक्तिशाली समझा जाएगा। इसलिए ब्रह्माजी ने कह दिया कि उनको पत्थर का अंत मिल गया है। इसी बीच फिर आकाशवाणी हुई कि मैं शिवलिंग हूं और मेरा ना कोई अंत है, ना ही शुरुआत और उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए।

शिवलिंग दो शब्दों से बना है। शिव व लिंग, जहां शिव का अर्थ है कल्याणकारी और लिंग का अर्थ सृजन. शिवलिंग के दो प्रकार हैं, पहला ज्योतिर्लिंग और दूसरा पारद शिवलिंग। ज्योतिर्लिंग को इस पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। कहते हैं कि मन, चित्त, ब्रह्म, माया, जीव, बुद्धि, आसमान, वायु, आग, पानी और पृथ्वी से शिवलिंग का निर्माण हुआ है।

ये जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक है, हम इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करते।