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भीमताल। “एक श्रमिक का दर्द”..
रोटी की तलाश में कई खुशियों से दूर हो गया, कभी था मैं भी माँ-बाप का राजा बेटा, आज जरूरतों के कारण मजदूर हो गया। 1 मई मजदूर दिवस के अवसर पर भीमताल नगर के समाजसेवी/पर्यावरण प्रेमी पूरन चंद्र ब्रजवासी ने कहा की आज भी मजदूर बैचेंन हैं अपने अधिकारों को पाने के लिए और सरकारें ‘देश की आजादी’ से ढोल पीटते आ रही है ‘मजदूर दिवस’ बढ़े जोर-शोर से मनाने की, जी हाँ हम बात कर रहे हैं आज 1 मई ‘मजदूर दिवस’ की, ‘दुनियां के लगभग 80 मुल्कों में’ आज का दिन लेबर डे, मई दिवस, के रूप में मनाया जाता है और इस दिन राष्ट्रीय छुट्टी तय की गई है। यूरोप में तो 1 मई का दिन ‘ऐतिहासिक रूप से’ ग्रामीण पगन त्योहारों से जुड़ा है।
हक पाना मजदूरों का अधिकार है तो हक दिलाना राष्ट्र का कार्य’, उन्होंने कहाँ अपना हक पाने को राष्ट्र का मजदूर ‘अज्ञानता व मजबूरी के अधीन’ हो सकता है किन्तु ‘देश के कर्णधार नही,’मई दिवस की कहानी’ “समाज सेवी बृजवासी की बात” पहली मई को समूचे विश्व में मई दिवस के रूप में मनाया जाता है, मई दिवस यानि’ ‘मजदूरों का दिन’, काम करने वाले, खासकर श्रम से जुड़े लोगों के लिए यह दिन एक ‘वार्षिक पर्व’ है। इसलिए इसे श्रम अथवा मजदूर दिवस भी कहाँ जाता है।
मई दिवस के आयोजन के पीछे मजदूरों के लंबे संघर्ष व आंदोलन और सफलता की लंबी दास्तान है l यह कहानी 19 वीं की है जब अमेरिका में मजदूरों पर गोलियाँ बरसाई गयी थी तथा बड़ी संख्या में निर्दोष मजदूर मारे गये थे और इसके उपरांत ही मजदूरों को काम करने के निश्चित घंटो की माँग भी पूरी हुई थी, तब से उसी संघर्ष और उन्हीं मजदूरों के शहादत की याद में पूरे विश्व में ‘मई दिवस’ मनाये जाने लगा l इस संघर्ष की शुरुआत 1838 में हुई थी। उन दिनों ‘अमेरिका सहित’ तमाम यूरोपीय देशों में कारखानों में मजदूरों के लिए काम का निश्चित समय निर्धारित नहीं था।
मजदूरों से बैलों की तरह इतना काम लिया जाता था कि वे अक्सर बेहोश होकर गिर पड़ते थे। यदा-कदा इसके विरुद्ध आवाज भी उठी पर लगभग दो दशक तक कारखानों के मालिकों का वही रवैया रहा। इस कारण मजदूरों का धैर्य धीरे-धीरे टूटने लगा तथा उन्होंने संगठित होकर शोषण के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। अमेरिका की नेशनल यूनियन ने अगस्त 1866 में अपने अधिवेशन में पहली बार यह माँग रखी कि मजदूरों के लिए दिन में केवल 8 घंटे काम के रखे जाये। यूनियन की इस घोषणा से मजदूरों के संघर्ष को बल मिला और धीरे-धीरे अमेरिका सहित अन्य देशों में भी यह माँग जोर पकड़ने लगी। जिसके बाद 1886 को 3 मई के दिन शिकागों शहर में लगभग 45000 मजदूर एक साथ सड़कों पर निकल आयें इसके बाद पुलिस ने हल्की झड़प के बाद ही फौरन मजदूरों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। जिससे तत्काल 8 मजदूर मारे गए और अनेक घायल हो गये । वहीं भीड़ में किसी ने पुलिस वालों पर बम फैक दिया जिससे एक पुलिस वाले की मौत और कई पुलिस कर्मी घायल हो गए।
इससे पुलिसवालों में आक्रोश बढ़ गया और उन्होंने प्रदर्शनकारियों को गोलियों से छलनी कर दिया, कई आंदोलनकारी नेताओं को उम्र कैद की सजा दी गयी, और कुछ को फाँसी पर लटका दिया गया। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी ये आंदोलन रुका नहीं बल्कि और तेज होता गया। जिसके बाद 14 जुलाई 1889 को ‘अंतरराष्ट्रीय समाजवादी मजदूर कांग्रेस’ की स्थापना हुई और इसी दिन इसने काम के 8 घंटे की माँग को दोहराया, अपनी मांग रखने के साथ-साथ ही अंतराष्ट्रीय समाजवादी मजदूर कांग्रेस ने 1 मई 1890 को ‘विश्व भर’ में पहली मई को ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाने का आवाहन किया गया। तभी से विश्व भर में इस दिन को मई दिवस या मजदूर दिवस मनाने की परंपरा आरंभ हुई।
भारत में मई दिवस 1926 से मनाया जाने लगा श्रमिक औद्योगिक विकास की सबसे बड़ी शक्ति है, श्रमिकों के कार्य कौशल के बल पर ही ब्यापार उद्योग प्रगति करते हैं और समाज व देश तरक्की करता है” समाज सेवी बृजवासी ने कहाँ आज जहाँ ‘मजदूर दिवस’ मनाते-मनाते देश में सेंचुरी पूरी होने के कगार पर है लेकिन मजदूर आज भी अपने अधिकारों को पाने को बेबस दिखता है, बड़ी-बड़ी गगन चुंबी इमारत खड़ी करने वाला मजदूर, ‘ताज महल से लेकर ग्रेट वॉल ऑफ चाईना तक की इमारत निर्माण मजदूर की ही मेहनत का नतीजा है’, “किसी विकासशील देश की रीढ़ की हड्डी मजदूर ही हैं”, फिर भी उनके अधिकारों के प्रति सरकार ‘पूर्णतः कार्यरत नहीं’ , ‘देश के संविधान’ ने मजदूरों को उनके अधिकार तो दिये लेकिन मजदूर राजनीति कारणों से इन अधिकारों से वंचित ही रहा।
हालांकि अभी कुछ वर्षों में देश में कई तरह से शासन-प्रशासन मजदूरों के लिए योजनाओं को धरातल पर लाने का कार्य कर रहा है लेकिन ये अब भी ‘ऊंठ के मुंह में जीरे’ जैसा हाल है। 2012 के आकड़ों के अनुसार भारत में कुल 16154 ट्रेड यूनियन है, जिनकी संयुक्त सदस्यता करीब 91.8 लाख है। पूरन ने कहा आज सरकार को औद्योगिक जगत में मजदूरों को न्याय देने के लिए ठेका प्रथा हटा देनी चाहिए ताकि वो डाइरेक्ट कारखानों से जुड़े और उन्हें उनका पूरा श्रम का मानदेय एवं हक मिल सके।कुशल व अर्द्ध कुशल दोनों मजदूरों के लिए शासन-प्रशासन को विभागों द्वारा धरातल पर जुड़ना व जोड़ना होगा तभी राष्ट्र की उन्नति व उत्थान संभव है।