अपनी संस्कृति, विरासत, जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए उत्तराखंड में एक बार फिर से आंदोलन की सुगबुगाहट होनी शुरू हो गई है। एक तरफ जहां उत्तराखंड में सख्त भू-कानून की मांग की जा रही है तो वहीं इस राज्य को संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा भी उठने लगा है। आखिर क्या है भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची और उत्तराखंड के इससे कैसे लाभ मिलेगा? ब्रिटिश सरकार ने भी 1931 पहाड़ को ये स्टेट्स दिया था, लेकिन यूपी ने छीन लिया था।
उत्तराखंड में सख्त भू-कानून और भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल करने मांग जोरशोर से उठने लगी है। पहाड़ में इन दोनों मांगों लेकर अब लोग सड़कों पर उतरने लगे है। अब सवाल यहीं है कि उत्तराखंड को भारत के संविधान निहित 5वीं अनुसूची में शामिल होकर क्या लाभ मिलेगा? बता दें कि यूपी के पहाड़ी जिलों को ब्रिटिश काल से ही ट्राइब स्टेट्स मिला हुआ था, लेकिन आजादी के बाद यूपी सरकार ने पहाड़ी जिलों से ट्राइब स्टेट्स छीन लिया था, जो उत्तराखंड को अलग राज्य बनने के बाद भी नहीं मिला है। साल 1931 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी तब के यूपी के पहाड़ी जिलों (आज के उत्तराखंड) में अनुसूचित जिला अधिनियम 1874 यानी ट्राइब स्टेट्स लागू किया था। कुल मिलाकर कहा जाए तो उत्तराखंड को ब्रिटिश सरकार में वहीं अधिकार मिले थे, जो आज के संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची में है। ब्रिटिश काल में पहाड़ में दो जिले थे,एक अल्मोड़ा और दूसरा ब्रिटिश गढ़वाल। वहीं टिहरी अलग से रियासत थी। संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची में राज्यवासियों को जल, जंगल और जमीन के लिए कुछ अतिरिक्त अधिकार मिले है, लेकिन भारत के आजाद होने के बाद साल 1971 में तत्कालीन यूपी सरकार ने अपने पहाड़ी जिलों यानी आज के उत्तराखंड का वो स्टेट्स खत्म कर दिया था। यानी उत्तराखंड को संविधान की 5वीं अनुसूची से बाहर कर दिया गया था, जो अधिकारी कभी अंग्रेजी हुकुमत ने भी पहाड़ के लोगों को दिए थे। हालांकि उत्तराखंड के हिमाचल से लगे जौनसार बाबर क्षेत्र में आज भी इस तरह के कुछ कानून लागू है, जिस कारण बाहरी लोगों को वहां जमीन खरीदना मुश्किल है। वहीं नौकरी में भी उन्हें चार प्रतिशत का आरक्षण मिलता है। बता दें कि जौनसार बाबर ट्राइब क्षेत्र है।
इतना ही नहीं तत्कालीन यूपी सरकार ने 1995 में पहाड़ी जिले (गढ़वाल और कुमाऊं) के लोगों को नौकरी में मिलने वाले 6 प्रतिशत आरक्षण को भी खत्म कर दिया था। तभी से पहाड़ में यूपी से अलग उत्तराखंड (उत्तरांचल) राज्य की मांग उठने लगी थी। धीरे-धीरे प्रथक राज्य की मांग को लेकर आंदोलन तेज होने लगा था। आखिर में सरकार को जनता के सामने झुकना पड़ा और साल 2000 में यूपी के अलग होकर उत्तराखंड गठन का नाम (उत्तरांचल) का जन्म हुआ, लेकिन अभीतक भी उत्तराखंड को संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग पूरी नहीं हुई। मोटे तौर कहे तो उत्तराखंड के छोड़कर संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची सभी पहाड़ी राज्यों में लागू है। धारा 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर संविधान की 5वीं और 6वीं सूची से बाहर था। उत्तराखंड के 5वीं अनुसूची में शामिल होने से न सिर्फ यहां जल, जगल और जमीन बचेगी, बल्कि यहां के युवाओं को केंद्रीय शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में 7.5 प्रतिशत की आरक्षण का लाभ भी मिलेगा। वहीं, जानकारों की माने तो यदि उत्तराखंड को भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल किया जाता तो यह पहाड़ के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करेगा। आज जिस तरह के उत्तराखंड के संसाधनों का दोहन हो रहा है, उस पर लगाम लग सकेगी।