उत्तराखंड राजभवन में फिर लटका राज्य विश्वविद्यालय विधेयक! विधानसभा के मानसून सत्र में था भेजा गया

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उत्तराखंड राजभवन में राज्य विश्वविद्यालय विधेयक फिर लटक गया है। पूर्व में राजभवन से लौटाए जाने के बाद सितंबर में हुए उत्तराखंड विधानसभा के मानसून सत्र में इसे पारित कर राजभवन भेजा गया था। राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन के मुताबिक विधेयक को अभी मंजूरी नहीं मिली है।

इसे विधि विभाग को परीक्षण के लिए भेजा गया है। उत्तराखंड विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान 11 विधेयक सदन से पारित होने के बाद मंजूरी के लिए राजभवन भेजे गए थे। इनमें से अधिकतर विधेयकों को मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन राज्य विश्वविद्यालय विधेयक और निजी विश्वविद्यालय विधेयक को अभी मंजूरी नहीं मिली है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक पूर्व में तत्कालीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने कई आपत्तियों के बाद इस विधेयक को विधानसभा लौटाया था। उन्होंने उस दौरान कुछ प्रावधान राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के विपरीत और कुलपति के चयन में कुलाधिपति (राज्यपाल) के अधिकार को कमतर किए जाने सहित कई आपत्तियां लगाई थी। अशासकीय महाविद्यालयों की संबद्धता को लेकर भी सवाल उठाया गया था।

राजभवन से विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाए जाने के बाद बताया गया कि कुछ आपत्तियों को दूर कर उसे फिर से भेजा गया है। गढ़वाल विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महामंत्री डीके त्यागी के मुताबिक राज्य विश्वविद्यालय विधेयक में अशासकीय महाविद्यालयों की संबद्धता और उनके शिक्षकों के वेतन को लेकर स्पष्ट नहीं किया गया है। सरकार ने राज्य विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालय विधेयक को मंजूरी के लिए राजभवन भेजा है। इन विधेयकों को मंजूरी मिलने से निजी विवि की मनमानी पर लगाम लगेगी। वहीं राज्य विश्वविद्यालय भी एक एक्ट से चल सकेंगे। सभी राज्य विवि एक नियम, एक परिनियम से चलेंगे। सरकार चाहती है कि केंद्रीय विवि से संबद्ध अशासकीय महाविद्यालयों को राज्य विश्वविद्यालय से संबद्ध किया जाए। ताकि इनमें होने वाली नियुक्तियों के साथ ही अन्य पर पूरी तरह से उसका नियंत्रण हो।राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल के पास है। सरकार इसके लिए तीन लोगों के नाम के पैनल की सिफारिश कर इसे राजभवन भेजती हैं। राज्यपाल इनमें से जिसे उपयुक्त पाते हैं, कुलपति के पद पर उसकी नियुक्ति करते हैं, लेकिन सरकार चाहती है कि कुलपति की नियुक्ति के लिए सरकार सबसे उपयुक्त व्यक्ति का नाम राजभवन भेजे। जिसकी इस पद पर नियुक्ति की जाए। वहीं पीएचडी की मानद उपाधि के लिए भी राजभवन के अधिकार को कमतर करने और महाविद्यालयों की संबद्धता को लेकर राजभवन से पूर्व में आपत्ति लग चुकी है।