पिथौरागढ़
आज कुछ तुफानी करते है… जी हां कुछ तुफानी करने का शौक भले ही आपको कभी कभार ही होता हो, और वो आपका शौक भी हो सकता है, लेकिन यहां तो हर रोज मासूम जिंदगियां तुफानी करते ही रहते हैं, और ये इनका शौक नहीं बल्कि मजबूरी है, क्योकि सरकारी तंत्र ने इनके सामने एसी मजबूरी खडी कर दी है कि यहां इंसानी जिंदगियां की कीमत कुछ नहीं, और हर रोज खतरों से खेलते ये ग्रामीण मौत से रोज दो चार हाथ करते ही रहते हैं, तो आइये दिखाते है कुछ तुफान करने वाले इन जांबाज खतरों के खिलाडियों को जिसे देख कर आप भी कहेंगे, वाकई सिस्टम ने इन्हें खिलाडी बना दिया, और वो भी मौत से जंग लडने वाला।
आज कुछ तुफानी करते है… जी हां कुछ तुफानी करने का शौक भले ही आपको कभी कभार ही होता हो, और वो आपका शौक भी हो सकता है, लेकिन यहां तो हर रोज मासूम जिंदगियां तुफानी करते ही रहते हैं, और ये इनका शौक नहीं बल्कि मजबूरी है, क्योकि सरकारी तंत्र ने इनके सामने एसी मजबूरी खडी कर दी है कि यहां इंसानी जिंदगियां की कीमत कुछ नहीं, और हर रोज खतरों से खेलते ये ग्रामीण मौत से रोज दो चार हाथ करते ही रहते हैं, तो आइये दिखाते है कुछ तुफान करने वाले इन जांबाज खतरों के खिलाडियों को जिसे देख कर आप भी कहेंगे, वाकई सिस्टम ने इन्हें खिलाडी बना दिया, और वो भी मौत से जंग लडने वाला।
तेज बहाव से बहने वाला पानी जो जरा सी चूक होने पर किसी को भी आघोष में ले ले, लेकिन खतरों के खिलाडी ये स्कूली बच्चे रोज मौत को चकमा देकर इस नदी को ऐसे ही खतरों से खेलते हुए ही पार कर लेते हैं, विवशता ेसी है कि अगर डर के मारे नदी पार नहीं कर पाये तो स्कूल नहीं जा सकेंगे, और पढना है तो फिर मौत से लडना है, जी हां ये हाल है एसे आदर्श गांव का जिसे सांसद ने गोद लिया है, ये आदर्श गांव सूपी की वो तस्वीरें है जो आदर्श गांव को पोल खोलती है, अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा से सांसद अजय टम्टा ने बागेश्वर जनपद के कपकोट विधानसभा के दूरस्थ गांव लिये थे, लेकिन वर्षों बाद सूपी गांव की ना तकदीर बदली है, और ना ही तस्वीर। लिहाजा हालात ये हैं कि बुनियादी सुविधाओं के लिए सांसद के गोद लिये गये गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, हालात ये है कि पुल न होने के कारण रोज ग्रामीणों को इसी तरह से उफनती हुई नदी पार करके जाना पडता है, और स्कूली बच्चों को स्कूल जाने के लिए भी यही एक मात्र रास्ता है।
लिहाजा खतरों के खिलाडी गांव में मौत से तो लड रहे हैं, लेकिन सरकारी सिस्टम हार चुके है,क्योंकि लम्बे समय से जनता की मांग पर किसी ने गौर तक नहीं फरमाया, वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि उत्तराखंड के सांसद मानो एक रबड़ स्टाम्प बनकर रह गये, उनको सिर्फ़ चुनाव जीतना था उसके बाद उन्हें जनता की न तो कोई फ़िक्र है और न ही कोई कद्र है।