उत्तराखंड के अल्मोड़ा में आपदा से प्रभावित 208 परिवारों को वर्षों से विस्थापन का इंतजार है। सरकारी तंत्र आपदा प्रभावितों के जख्मों पर कई साल बीतने के बाद भी अब तक मरहम तक नहीं लगा सका है। आपदा प्रभावितों को महज कोरे आश्वासनों के सिवा और कुछ नहीं मिला। विस्थापन के दावे तो बहुत हुए लेकिन विस्थापन अब तक नहीं हुआ। इधर मानसून काल नजदीक आते ही प्रभावितों को चिंता सताने लगी है।
अल्मोड़ा जिले में वर्ष 2010, 2012, 2013 में आई आपदा में 208 परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए। आपदा की इन घटनाओं में इन परिवारों ने अपने पुश्तैनी मकान गवां दिए, खेती योग्य भूमि भी पूरी तरह बर्बाद हो गई। कुछ ने खतरा भांप गांव के अन्य घरों में शरण ली तो कई आज भी आपदा की मार से जर्जर हो चुके घरों में रहने को मजबूर हैं। हर वर्ष मानसून काल में आपदा से प्रभावित इन परिवारों की चिंता बढ़ जाती है। आसमान से कब आफत बरस जाए, इसकी चिंता से इन परिवारों की रातों की नींद गायब हो जाती है। आपदा की घटनाओं के बाद सरकारी तंत्र ने इन अतिसंवेदनशील गांवों का भूगर्भीय सर्वे कराया और विशेषज्ञों ने इन गांवों में रहने वाले परिवारों को यहां से तत्काल विस्थापित करने सलाह दी लेकिन एक दशक से अधिक का समय बीतने के बाद भी प्रभावित परिवारों का विस्थापन नहीं हो सका है। इस संबंध में जिलाधिकारी विनीत तोमर ने बताया कि आपदा प्रभावितों के विस्थापन के लिए प्रस्ताव शासन को भेजे गए हैं। शासन से निर्देश मिलने पर ही आगे की कार्यवाही संभव है। अल्मोड़ा जिले में अब तक हुईं आपदा की घटनाओं में भैंसियाछाना, रानीखेत और लमगड़ा विकास खंड के लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। सल्ट और चौखुटिया विकास खंड में भी आपदा काल के लिहाज से खतरा कम नहीं है।