पीएम मोदी के उत्तराखंड दौरे को लेकर लोगों में उत्साह! लोहाघाट के निवासियों को भी काफी उम्मीदें

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संभावित दौरे को लेकर पूरे जिले में उत्साह और उमंग का माहौल है। यह दौरा कितना गुल खिलाएगा यह तो आने वाले कुछ दिनों में पता लगेगा, लेकिन दौरे को लेकर लोहाघाट के लोगों की उम्मीदें परवाज भर रही हैं। पीएम के दौरे से लोगों को उनकी दशकों पुरानी नजूल भूमि की समस्या का समाधान होने की उम्मीद है। नगर के लोग वर्षों से नजूल भूमि फ्री होल्ड करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक की सरकारों ने इस दिशा में गंभीरता से काम नहीं किया है। मामला भले ही कोर्ट में लंबित है, लेकिन सरकार पहल करें तो निश्चित ही इसका समाधान हो सकता है।

वर्ष 1908 में अंग्रेजों द्वारा बसाए गए लोहाघाट नगर की नजूल भूमि फ्री होल्ड न होने से यहां के लोग आज भी अपने मकानों में भी बिना स्वामित्व के रहने को मजबूर हैं। दशकों से यहां के लोग भूमि फ्री होल्ड करने की मांग कर रहे हैं। लगभग 92 वर्ष पूर्व कृषि कार्य के लिए यहां को लोगों को लीज पर जमीन दी गई। वर्ष 1978 तक भूमि का नजराना भी लिया जाता था। 1962 में हुए बंदोबस्त के समय भूमि के खतौनी नक्शे बनाए गए और प्रशासन द्वारा लोगों को पट्टे पर भूमि देने के साथ भवन बनाने की अनुमति दी गई थी। वर्ष 1975 में जिला परिषद द्वारा नजूल प्लाटों का नीलाम किया गया था, लेकिन पट्टे नहीं मिले। 1978 से यहां की नजूल भूमि जिला प्रशासन के नियंत्रण में है। वर्ष 1987 के शासनादेश के तहत तीन प्लाट आवंटित कर लोगों से विनियमितीकरण के लिए प्रचलित दर पर नजराना व किराया जमा किया गया। जमा हुई धनराशि जनवरी 1991 में कोषागार लोहाघाट में जमा की गई थी। वर्ष 1994 में जारी शासनादेश के अनुसार, नगर के 30 भवन लीज पट्टा स्वामियों ने वर्ष 1991 के सर्किल रेट के आधार पर अप्रैल 1995 में धनराशि जमा की थी। जिसके आधार पर उनके भवनों की रजिस्ट्री भी हो गई, लेकिन फिर भी मालिकाना हक नहीं मिल पाया। इस प्रकरण में उसे नजूल भूमि की जगह खाम भूमि बताया गया जिसके कारण अन्य भूमि व भवन स्वामी अपने पट्टों को फ्री होल्ड नहीं करा पाए। नगर निवासी एडवोकेट नवीन मुरारी, नगर पालिका अध्यक्ष गोविंद वर्मा, पूर्व चेयरमैन भूपाल सिंह मेहता, सतीश खर्कवाल, राज्य आंदोलनकारी राजू गड़कोटी, बृजेश ढेक, सुरेश ढेक आदि ने बताया कि जनप्रतिनिधियों द्वारा इस मामले में गंभीरता दिखाई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरान लोहाघाट के लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है।

राज्य गठन के बाद 18 नवंबर 2011 को उत्तराखंड सरकार के राजस्व अनुभाग ने लोहाघाट नगर की समस्त भूमि को नजूल भूमि घोषित कर दिया। 22 दिसंबर 2011 को भूमि का प्रबंधन नजूल नीति के अनुसार, किए जाने का शासनादेश जारी भी कर दिया गया। तय किया गया कि वर्ष 2000 के सर्किल रेट में नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने की कार्रवाई की जाएगी। शासन के आदेश के बाद 2012 में पत्रावलियां जमा हुई थी। 2013 में भूमि को फ्री कराने के लिए राजस्व निरीक्षक के नेतृत्व में पांच सदस्यीय टीम गठित की गई। लोगों ने भूमि का स्व मूल्यांकन कर 25 प्रतिशत धनराशि राजकोष में जमा की थी। शेष राशि राजस्व विभाग के सर्वे के बाद जमा होनी थी। भूमि को फ्री होल्ड करने के लिए 1499 लोगों ने आवेदन किए हैं, जिसके तहत तीन करोड़ 75 लाख 36 हजार 504 रुपए की धनराशि स्टांप शुल्क के रूप में राजकोष में जमा है। राज्य सरकार ने 11 दिसंबर 2021 को नई नजूल पालिसी लागू कर दी है, लेकिन जनहित याचिका के कारण लोहाघाट नगर की भूमि में इसका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। अविभाजित उत्तर प्रदेश शासन द्वारा एक सितंबर 1998 तथा तीन दिसंबर 1999 को नजूल भू-खंडों के पट्टों को फ्री होल्ड करने के शासनादेश निर्गत किए गए थे। एक सितंबर 1998 के शासनादेश के अनुसार 30 नवंबर 1991 को प्रभावी सर्किल रेट पर भूमि फ्री होल्ड करने की सुविधा शासन द्वारा दी गई थी। शासनादेश के अनुसार, लोहाघाट नगरवासियों ने भी अपने भू-खंडों को फ्री होल्ड किए जाने के लिए 25 प्रतिशत धनराशि के साथ आवेदन करने शुरू कर दिए। कुछ लोगों ने विधिवत आवेदन कर धनराशि राजकोष में जमा भी कर दी लेकिन प्रशासन ने भूमि को खाम लैंड बताकर फ्री होल्ड के लिए की जा रही आवेदन प्रक्रिया पर रोक लगा दी।