लगातार बढ़ती महंगाई से किसान परेशान हैं। किसानों की आमदनी दोगुनी करने के प्रयास करने के दावे लगातार किए जाते है,जबकि हकीकत यह है कि खर्च दोगुना हो गया है। मजदूरी हो या फिर डीजल का खर्च या फिर खेतों में डालने के लिए खाद हो, सभी के दाम बढ़ गए हैं। अकेले खेती करना ही महंगा नहीं हो रहा है। साथ ही परिवार को चलाने के लिए भी रोजमर्रा की चीजें भी महंगी हो गई हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि किसानों को आमदनी दोगुनी होने का लाभ कैसे मिलेगा। वहीं कई बड़े सवालों के साथ स्थानीय तौर पर भी एक किसान को कई और परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। जिससे किसान लगातार परेशान होता है। इतना ही नहीं किसान को अपनी परेशानी को लेकर अधिकारियों के दफ्तरों के भी चक्कर लगाने पड़ते है। आज की हमारी यह खबर ऐसी ही एक घटना पर आधारित है। इस खबर में हम एक किसान के परेशानी की बात करेंगे और आपको बताएंगे की स्थानीय तौर पर एक किसान को कैसे परेशान होकर अपनी ही फसल काटने के लिए अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े। लेकिन फिर भी किसान की परेशानी का समाधान नहीं हुआ।
केंद्र और राज्य सरकारें किसानों की आय बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है इससे किसानों को फायदा भी हो रहा है। खासकर बड़े किसानों को लाभ हुआ है लेकिन छोटे और सीमांत आज भी वहीं है जहां वो पहले थे उनके हालात में अपेक्षाकृत सुधार नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि उनका शोषण सबसे ज्यादा होता। वही शोषण के साथ छोटे किसानों को स्थानीय तौर पर भी कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। जहां कभी स्थानीय लोग और तो कभी समाज के सामने अपने आप को उनका ठेकेदार और समाजसेवी कहलन वाले कुछ स्थानीय नेता अपने फायदे के लिए छोटे किसानों का उत्पीड़न करते हैं। ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड के जनपद ऊधम सिंह नगर जिला मुख्यालय रुद्रपुर ट्रांजिट कैंप का है। जहां एक छुटभैय्या नेता और अपने आप को समाज का हितेषी और सेवक बताने वाले एक व्यक्ति ने पहले तो किसान के खेत में जाने वाले रास्ते को लेकर विवाद किया और इस विवाद को लेकर कोर्ट में भी अपील की। फिर कोर्ट के आदेश में स्थिति का हवाला देकर किसान के खेत में लगे उसी की फसल काटने से उसको रोकने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना कर लगातार उसे परेशान किया। इतना ही नहीं सीएम हेल्पलाइन की मदद लेते हुए स्थानीय पुलिस की सहयता से किसान के पक्के फसल को काटने से उसे रोक दिया। थकहार कर जब किसान ने स्थानीय नेताओं से मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी भी स्थानीय नेता ने किसान की मदद करने से साफ इंकार कर दिया। क्योंकि सामने वाला समाज का एक ठेकेदार समाज सेवी था। जिससे कार्यक्रम में सभी नेताओ को अपनी फोटो खिचवाकर राजनीती चमकनी थी। इतना ही नहीं किसान अपने परेशानी के समाधान के लिए स्थानीय विधायक से भी मदद की गुहार लगाई। हालांकि अत्याधिक व्यस्तता और कई कार्यक्रमों के बावजूद स्थानीय विधायक ने किसान की मदद करते हुए रुद्रपुर के तहसीलदार को मामले का समाधान करने को कहा। लेकिन अधिकारी तो अधिकारी थे वह अपनी कुर्सी से उठकर कैसे किसान की मदद करते हैं। लेकिन विधायक जी के आदेश का भी पालन करना था तो कार्रवाई के नाम पर उन्होंने पटवारी से रिपोर्ट लाने को कहा। रिपोर्ट भी बनी पर किसान की परेशानी का समाधान नहीं हुआ। पटवारी महोदय ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ दिया कि कोर्ट के आदेश का हम क्या करें। थकहार कर किसान ने न्यायालय की शरण लेते हुए अपने खेत में लगे फसल काटने की अनुमति मांगी।
इस पूरे मामले में हमसे बातचीत करते हुए पीड़ित किसान ने अपनी आपबीती बताई। किसान ने बताया कि ट्रांजिट कैंप क्षेत्र में उसकी खेती के लिए जमीन आवंटित है। जो उसके और परिवार के नाम पर रजिस्टर्ड है। जिस पर वह खेती कर अपना जीवन यापन करता आ रहा है। लेकिन एक स्थानीय छूटभैय्या नेता ने खेत में जाने वाले रास्ते को लेकर उसे काफी लम्बे समय से उसे परेशान करता हुआ आ रहा है। इसको लेकर मामला कोर्ट में भी विचाराधीन दिन है। मामले में सड़क के विवाद को लेकर यथा स्थिति बनाए रखने के आदेश हैं। लेकिन उसे आदेश में खेती और फसल को लेकर माननीय कोर्ट ने कोई भी आदेश पारित नहीं किया है। इसके बावजूद भी स्थानीय छूटभैय्या नेता उसकी फसल को काटने से रोकने के लिए कभी मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में फोन कर पुलिस की मदद से उसका उत्पीड़न कर रहा था तो कभी स्थानीय नेताओं और अपने साथियों की मदद से उसके साथ लड़ाई झगड़ा करने के लिए आतुर हो जाता। किसान ने बताया कि इस मामले को लेकर उसने कुछ स्थानीय नेताओं से भी मदद की गुहार लगाई और मामले का समाधान करवाने को कहा। लेकिन किसी भी स्थानीय नेता ने उसकी मदद नहीं की। थकहार कर वह स्थानीय विधायक शिव अरोड़ा के पास भी पहुंचा तो विधायक जी ने उसकी मदद करते हुए रुद्रपुर के तहसीलदार को मामले का समाधान करने को कहा। लेकिन कार्रवाई के नाम पर तहसीलदार ने पटवारी से रिपोर्ट बनाने की बात करते हुए मामले को कुछ दिनों तक टालते रहे। फिर रिपोर्ट बनने के बाद मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए मामले का समाधान करने से आनाकानी करने लगे। जिसके बाद वह मान्य न्यायालय पहुंचा। कोर्ट के मौखिक आदेश के बाद उसे फसल काटने की अनुमति मिली। वही इस मामले में जब हमने नेताजी के पक्ष को जानने के लिए उनका फोन मिलाया तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया।