उत्तराखण्डः कुमाऊं विवि के लोकसूचना अधिकारी की मनमानी पर चढ़ा राज्य सूचना आयुक्त का पारा! याद दिलाए सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के नियम, लगाई फटकार

Spread the love

देहरादून। राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने एक अपील की सुनवाई करते हुए कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के लोक सूचना अधिकारी को सूचना न देने और व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित न होने के लिए लताड़ लगाई और साथ ही सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के नियमों को भी याद दिलाया । मामले के अनुसार अपीलार्थी सुनील मेहता के द्वारा 31 जुलाई 2023 को कुमाऊँ यूनिवर्सिटी नैनीताल के औषधि विज्ञान विभाग से कुल 6 बिन्दुओं की सूचना मांगी गयी थी जिस पर लोक सूचना अधिकारी ने अपीलार्थी को अपूर्ण सूचना प्रेषित कर दी । सम्पूर्ण सूचना प्राप्त न होने पर अपीलार्थी ने कुमाऊँ यूनिवर्सिटी में प्रथम अपील दायर की जिस पर प्रथम अपीलीय के आदेश के क्रम में कोर्डिनेशन सेल के प्रभारी नवीन चन्द्र पनेरु ने बिन्दु संख्या 1,2,3,4, एवं 5 की अवशेष सूचना 24 पृष्ठों में संलग्न कर कर अपीलार्थी को प्रेषित कर दी और बिन्दु संख्या 6 की सूचना देने से मना कर दिया । और फिर अपीलार्थी सुनील मेहता ने दूसरी अपील करते हुए राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया ।
राज्य सूचना आयोग ने जिस पर संग्यान लेते हुए उभय पक्षों की सुनवाई के लिए 27 मई 2024 की तिथि नियत की और कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के लोक सूचना अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के आदेश दिये । 27 मई 2024 को राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सुनवाई करते हुए कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के लोक सूचना अधिकारी के द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि जगमोहन सिंह मेहरा से लोक सूचना अधिकारी के अनुपस्थित होने का कारण पूछा जिसका वो जवाब नहीं दे सके जिस पर योगेश भट्ट ने अपने आदेश कि बिन्दु संख्या 6 में प्रतिनिधि को चेतावनी देते हुए स्पष्ट किया कि मांगी गयी सूचना की जानकारी संबन्धित लोक सूचना अधिकारी को होती है इसलिए उनका उपस्थित होना जरूरी होता है अगर अपरिहार्य कारणों से लोक सूचना अधिकारी उपस्थित नहीं हो पाते तब भी अनुपस्थित होने के कारणों का उल्लेख करना जरूरी होता है ।
राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने आदेश कि बिन्दु संख्या 7 में कहा कि विभागीय अपीलीय अधिकारी ने 29 सितंबर 2023 को प्रथम अपील का निस्तारण किया लेकिन उनके द्वारा निस्तारित आदेश में यह अंकित नहीं किया कि अगर प्रथम अपील से अपीलार्थी असंतुष्ट होता है तो वह द्वितीय अपील उत्तराखंड सूचना आयोग में कर सकता है जो कि गलत है इसलिए भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए । और बिन्दु संख्या 8 में योगेश भट्ट ने कहा कि विभागीय अपीलीय अधिकारी ने प्रथम अपील के निस्तारण आदेश में केवल निर्देश देकर अपने ज़िम्मेदारी ख़त्म कर दी जबकि सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना दिलाये जाना अपीलीय अधिकारी का दायित्व होता है जिसे कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के विभागीय अपीलीय अधिकारी ने पूरा नहीं किया । राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने मुख्य सचिव उत्तराखंड शासन के द्वारा निर्गत शासनादेश संख्या 231/xxxi(15) 2016 G-07 (रा0 सू0 अ0)/2015 दिनांक 17 फरवरी 2016 का हवाला देते हुए कहा कि प्रथम अपीलीय अधिकारी प्रथम अपील के निस्तारण में 15 15 दिनों की तारीखें लगाकर अपीलों का निस्तारण करें और अपील का निस्तारण तब तक न करें जब तक कि अनुरोध पत्र की सभी दी जाने वाली सूचनाएँ प्रेषित न कर दी जाएँ । साथ ही उन्होने कहा कि भारत सरकार का नामित अधिकारियों के लिए सख्त निर्देश है कि सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अपील पर निर्णय करना अर्ध न्यायिक कार्य है । इसलिए अपीलीय प्राधिकारी के लिए यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि केवल न्याय हो ही नहीं बल्कि होते हुए दिखाई भी देना चाहिए इसलिए अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश स्पीकिंग ऑर्डर होना चाहिए जिसमें निर्णय के पक्ष में समुचित तर्क दिये
अपीलार्थी सुनील मेहता द्वारा बिन्दु संख्या 6 में वर्ष 2009-10 एवं वर्ष 2010-11 में कुलाधिपति कुमाऊँ विश्वविध्यालय द्वारा औषधि विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर की गयी सभी नियुक्तियों में से निरस्त की गयी सभी नियुक्तियों की जानकारी अभ्यर्थियों के नाम और विशेषज्ञता अहर्रता और योग्यता की जानकारी के साथ मांगी गयी थी जिस पर कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के लोक सूचना अधिकारी ने सूचना देने से माना कर दिया था जिस पर । राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन अर्हता एवं योग्यता प्रमाण पत्रों के आधार पर सूचना अधिकार के अंतर्गत आने वाले लोक प्राधिकार में चयन किया जाता है उन्हें सार्वजनिक न किया जाना अथवा सूचना अधिकार के अंतर्गत देने से मना किया जाना सूचना अधिकार अधिनियम की मूल भावना पारदर्शिता के विपरीत है। किसी भी लोक प्राधिकार के अंतर्गत कार्मिकों की नियुक्ति में पारदर्शिता व्यापक लोकहित का विषय है। जिस पर कुमाऊँ यूनिवर्सिटी से आए नामित सूचना अधिकारी ने बताया कि एक अभ्यर्थी की नियम विरुद्ध नियुक्ति के मामले में कुलाधिपति के द्वारा नियुक्ति निरस्तीकरण की कार्यवाही की गयी थी जिस पर अभ्यर्थी न्यायालय चला गया और न्यायालय ने कुलाधिपति के आदेश पर स्टे लगा दिया तब से मामला न्यायालय में लंबित है इस संबंध में सूचना देना न्यायालय की अवमानना के दायरे में आता है इसलिए अपीलार्थी को सूचना नहीं दी गयी ।
राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने जब लोक सूचना अधिकारी के प्रतिनिधि से पूछा कि क्या न्यायालय का कोई ऐसा आदेश है कि इस संबंध में सूचना नहीं दी जा सकती जिस पर प्रतिनिधि ने बताया कि ऐसा कोई भी आदेश न्यायालय के द्वारा नहीं दिया गया है । जिस पर योगेश भट्ट ने अपीलार्थी को तत्काल सूचना दिये जाने के आदेश किए और यह स्पष्ट किया कि जब तक न्यायालय का आदेश न हो सूचना दी जा सकती है सूचना को मामला नयायालय में विचारधीन है कह कर छुपाया नहीं जा सकता ।