नई दिल्ली। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पीएफआई द्वारा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत एक गैरकानूनी संगठन के रूप में अपने पदनाम को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संगठन को पहले संबंधित उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए। पीएफआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान भी इस पर अपनी सहमति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में पारित यूएपीए ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ प्रतिबंधित संगठन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। केंद्र सरकार ने 28 सितंबर, 2022 को यूएपीए की धारा 3 के तहत पीएफआई को एक गैरकानूनी संगठन घोषित किया था। संगठन पर ‘गैरकानूनी गतिविधियों’ में शामिल होने का आरोप लगाया गया था, जो देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए खतरा है। यूएपीए में प्रावधान है कि ऐसा कोई प्रतिबंध तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि यूएपीए ट्रिब्यूनल द्वारा अधिनियम की धारा 4 के तहत पारित आदेश द्वारा इसकी पुष्टि नहीं की जाती है। अक्टूबर 2022 में केंद्र ने प्रतिबंध की समीक्षा के लिए यूएपीए ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति शर्मा की नियुक्ति को अधिसूचित किया था।